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प्रकृति (कविता )

DATE : 2017-12-12 00:07:54


प्रकृति है क्या किसने है जाना,
कौन है जिसने इसके रहस्य को पहचाना,
जड़ी-बूटिओं की खाद्यान है इसमे,
खनिz पदार्थों की जान है इसमे
न है ये सोना न है ये मोती,
ये तो है मानव जीवन की ज्योति,
रंग-बिरंगे फूल खिलाती,
इंद्रधनुषी रंग बिखराती,
आज जहाँ मानव है मानव का शत्रु ,
ये तो है सब की ही भक्षु ,
धन्य-धान्या न इसको कभी भाया,
प्रेम ने इसको सदा लुभाया ,
ममता भरे आँचल से इसके,
कौन है जो अन्भिग्य रह पाया,
क्या है ग़रीबी क्या है अमीरी ,
भेद न इसके कभी मंन मे आया,
कण-कण मे इसके सौन्द्र्य ही तो समाया,
कौन है जो इसको कभी ताड़ पाया,
सत्य ही तो है जो सब ने कहा है,
प्रकृति है क्या किसने है जाना ,
कौन है जिसने इसके रहस्य को पहचाना....

Gunj- ek gujarish

Writer : Deepa Rani

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